कविता

सुना है फिर चुनावी बादल छाने लगे हैं।।

सुना है फिर चुनावी बादल छाने लगे हैं।।———-

सारे नेता आजकल गाँव में आने लगे हैं।
सुना है फिर चुनावी बादल छाने लगे हैं।

गड्ढों वाली सड़कों में टल्ले चिपकाने लगे हैं।
दीवारों को साफ करके चूना लगाने लगे हैं।
हाथ में झाड़ू पकड़ कर फ़ोटो खिंचवाकर ये।
फेसबुक, व्हाट्सएप में फ़ोटो लगाने लगे हैं।।

सुना है फिर चुनावी बादल छाने लगे हैं।।———-

जन्मदिन, शादी, नामकरण में भी जाने लगे हैं।
कुछ कांग्रेस, कुछ भाजपा के गीत गाने लगे हैं।
जो गायब हो गए थे चुनाव के बाद, आज तक।
वो नेता पैर छूँकर, हाथ जोड़, गले लगाने लगे हैं।

सुना है फिर चुनावी बादल छाने लगे हैं।।———-

शहर, गाँव सब चमका देंगे, ये बताने लगे हैं।
लोगों को इकट्ठा कर भीड़ को बढ़ाने लगे हैं।
वादे पिछले चुनाव से पहले भी किये इन्होंने।
लोगों को फिर से झूठे सपने दिखाने लगे हैं।

सुना है फिर चुनावी बादल छाने लगे हैं।।———-

नेताओं के चमचे भी अपना गणित लगाने लगे हैं।
अपनी- अपनी पार्टी की अच्छाइयां बताने लगे हैं।
अपने गाँव में जिनको आज कोई नहीं पूछता है।
वो विधायक, मंत्री को अपना सगा बताने लगे हैं।

सुना है फिर चुनावी बादल छाने लगे हैं।———-
सारे नेता आजकल गाँव में आने लगे हैं।

संदीप कुमार।

मेरा नाम संदीप कुमार है। मेरी उम्र 34 वर्ष है। मैं उत्तराखंड के नैनीताल में रहता हूँ। कुमाऊँ यूनिवर्सिटी से स्नाकोत्तर किया है। वर्तमान में पत्रकारिता कर रहा हूँ। शायरी, कविता, व्यंग, गज़ल व कहानियां लिखने का बहुत शौक है। इसलिए अपनी सरल बोलचाल की भाषा में…

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