कवितास्वास्थ्यख़ास

डॉक्टर, यानी ईश्वर

डॉक्टर,
यानी ईश्वर ।

एक देव,
साथ सदैव ।

या कहूं ख़ुदा,
जो कभी ना जुदा ।

मेरा शुभचिंतक,
सेवा करे अनथक ।

भगवान परमात्मा,
हर दम मुझे थामता ।

स्वयंभू परमेश्वर,
मौला का स्वर ।

अल्लाह नानक,
मेरे जीवन का चालक ।

रखे हथेली पे जान,
ये मेरा दीन ईमान ।

मुझे बीमारी से बचाता,
मेरा ईसा, मेरा विधाता ।

खून का ना कोई रिश्ता,
फ़िर भी वो जैसे फरिश्ता ।

प्रभु का दूसरा रूप,
ये अवतार जो है अनूप ।

दिया जगदीश का दर्जा,
मैं ऋणी, असंख्य है कर्ज़ा ।

निभा रहा ये अपना धर्म,
२४ घंटों करे अपना कर्म ।

मेरी छांव व मेरी धूप,
ये आदित्य का स्वरूप ।

रोग से दिलाता ये निजात,
कष्ट हरता, है मेरा नाथ ।

कहलाया जाता ये भी वैद्य,
हमें आज़ाद कर होता क़ैद ।

स्वास्थ्य कर्मी, चिकित्सक,
झुके शीश नतमस्तक ।

सब व्याधि की रखे दवाई,
है हमदर्द, ना कभी तन्हाई ।

कोई जब है काम ना आता,
मेरा जीवन ये ही बचाता ।

सब जब अपने हाथ खड़े करें,
ये ही दुश्मन से जा जान से लड़े ।

जितना करूं, कम पड़े सलाम,
अनुगृहित इसका है आवाम ।

सैनिक प्रहरी है ये योद्धा,
मेरी खातिर ये ना सोता ।

हृदयतल से है आभार,
कृतज्ञता, समर्पण, है सम्मान ।

जिसने इस पर किया है हमला,
दुर्भाग्यपूर्ण ये निंदनीय घटना ।

जिसने भी इसे किया है घायल,
बच ना पाएगा बुजदिल कायर ।

पशुवत अमानवीय है ये सोच,
मरा ज़मीर, क्यों ना संकोच ?

मन आया भर,
दहशत दुख डर ।

चिंता का विषय,
गुरु से लड़ रहा शिष्य ।

होता इसका अनादर,
मैली होती चादर ।

भर्त्सना भाव व लानत,
महंगी इसकी कीमत ।

तना अपना रहा वो काट,
ख़ुद से ख़ुद को रहा है बांट ।

घृणित घिनौनी ये करतूत,
अपना घर ही लिया है लूट ।

अपने पैरों पे मारी कुल्हाड़ी,
बदसलूकी पड़ जाए ना भारी ।

अपनी व्यथा वो किसे बताए ?
शुभ कर्म कर पत्थर खाए ।

शर्म से नीचे झुक गया सिर,
छाती जैसे दी है चीर ।

उसपे गर जो होगा वार,
पूजा नमाज़ का क्या आधार ?

गीता कुरान देते तालीम,
परवरदिगार से पहले हकीम ।

जिसने उसपर फैंके पत्थर,
फूंक दिया मानो अपना घर ।

निर्दय क्रूरता घात व हत्या,
कुछ ना हासिल, राह है भटका ।

गर डॉक्टर को दे देगा घाव,
पापी का फ़िर नहीं बचाव ।

कहती बाईबल गुरु ग्रंथ साहिब,
प्रेम भाईचारा अहिंसा हों एक ।

डॉक्टर्स, नर्स, स्वास्थ्य कर्मी, पुलिस,
सुनो इनके दुख दर्द, इनकी चीख ।

अपनी जान जोखिम में डाल,
बचा रहे ये हमारी जान ।

बजाए करने के सहयोग,
इनका हो रहा दुष्प्रयोग ।

इन्हें सम्मान का पूरा हक,
विश्वास आस्था हो भरसक ।

ये ही असली रोल मॉडल,
अंगारों पे ये रहे हैं चल ।

इनसे गर हो दुर्व्यवहार,
अपराधी पे है धिक्कार ।

धरती को कर रहा है बंजर,
ख़ुद पर घोंपा दोषी ने खंजर ।

पैरामेडिक्स का देखकेे त्याग,
आंखें नम, सराहनीय ये काम ।

बजाए बड़ाने के उनका मनोबल,
उनसे धोखा फरेब वा छल ।

कैसे पाएं हैं संस्कार ?
रखवाले को दे रहे आघात !

देश की बदनसीबी,
तहज़ीब की गरीबी ।

जिस थाली में कर रहे हैं भोजन,
उसमें छेद विश्वासघात गबन ।

माना ना कर सकते मदद,
पार मगर ना करें अपनी हद ।

हमारी खातिर वे रहे हैं जूझ,
फ़िर क्यों हिंसा और गोला बारूद ?

नेकी कर दरिया में डाल,
रक्षक हो रहा लहूलुहान ।

लज्जित मौन सन्न इंसानियत,
दुविधा में, क्यों बदली नीयत ?

फ़िर भी कम नहीं वैद्य का जज़्बा,
घूम रहे हर नुक्कड़ कस्बा ।

आज लग रहा है असहाय,
जाए तो वो किस राह जाए ?

हो रहा जैसे वो बेबस,
सांप रहे हैं जैसे डस ।

रूह कांप जाए,
जो वो घबराए ।

ऐसी स्थिति चिंताजनक,
ईश पे शक, यानी ख़ुद पर शक ।

अस्पताल में हो रहे बवाल,
ख़ुद से नासमझ पूछे सवाल !

नर्सों के साथ हो रही अभद्रता,
फूहड़पन, ताने और अश्लीलता ।

वैद्य के साथ ये करता कौन ?
ऊपर वाला देख व्याकुल मौन ।

इनपर वाजिब है कार्रवाई,
कुछ हद तक तब हो भरपाई ।

गुनहगार को जब वैद्य बचाएगा,
क्या उस वक्त वो उनसे नज़रे मिला पाएगा ?

इस सवाल का जवाब कठिन,
गद्दार का ज़मीर जागेगा किस दिन ?

जान बचाने वालों पर हमला गुनाह,
उनको ना कोई माफ़ी, ना मिले पनाह । 

असामाजिक तत्व,
तम घनत्व ।

हमलावर की सोच खतरनाक,
परमात्मा को भी करे है ख़ाक ।

मारपीट, गालियां, फेंक रहे हैं थूक,
चिंतन कहां पे हुई है चूक ?

औझल विनम्रता शिष्टाचार,
स्वार्थ मतलब का हो गया संसार ।

जांच का हो रहा पुरजोर विरोध,
भगाया जा रहा, बिन वजह क्रोध ।

करने दें सेवा, ना करें व्यवधान,
कुछ तो होगा दीन ईमान ।

भगवान से थोड़ा जाएं डर,
जैसे बोएं बीज, वैसे फ़ल ।

असंवेदनशील लोग,
समाज का मनोरोग ।

गंभीर अक्षम्य दुष्कृत्य,
ना कुछ गुप्त, सब तथ्य ।

चिकित्सक की सबसे अहम भूमिका,
इसको चूमा, मानो रब को चूमा ।

ना बंदूक, ना गोली, ना मिसाइल है संग,
फ़िर भी ये लड़ रहा है जंग ।

इसके जुनून को है नमन,
ये ही धरती, ये ही गगन ।

इसकी सेवा का यही सिला ?
अल्लाह से भला कोई करता है गिला ?

द्रवित व्याकुल मर्म,
संकट में है धर्म ।

अच्छा हो बर्ताव,
सही दिशा में बहाव ।

श्वेत वस्त्र में ये इंसान,
ज़रिया रब, ईसा, भगवान ।

सहयोगात्मक रवैया बहुत ज़रूरी,
आवश्यक हो ख़त्म दिलों में दूरी ।

सरकार का कड़ा फ़ैसला,
बड़ा चिकित्सकों का हौंसला ।

डॉक्टरों की हिफाज़त,
वास्ते पेश अधिनियम ।

महामारी रोग अधिनियम 1897,
मंज़ूरी के साथ संशोधन तय ।

ना और अन्याय,
होगा मजबूत, ना असहाय ।

अध्यादेश पास पेश,
हिंसा ना बर्दाश्त का संदेश ।

कठोर सज़ा का प्रावधान,
जुर्माने से भी संज्ञान ।

डॉक्टर्स के लिए सुरक्षा कवच,
हारेगा झूठ, जीत जाएगा सच ।

ज़ुल्म की अब आंधी,
पड़ेगी अत्याचारी को भारी ।

इस कदम का स्‍वागत,
दिल हुआ गदगद ।

इस कानून का वायदा,
उपद्रवियों के मन में डर पैदा ।

सरकार की प्रशंसा,
कानून में तब्दील मंशा ।

सही वक्‍त पर उचित निर्णय,
इरादों वाले होते हैं गिने चुने ।

स्वरचित – अभिनव ✍🏻

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

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