कविताख़ास

ना तेरा कसूर है…ना मेरा कसूर – बृजेश यादव

ये जो मदहोशी सी छायी है,
तेरे हुस्न का सब कसूर है।

ये जो खोया खोया सा मैं रहता हूँ,
तेरी बातों का सब कसूर है।

ये जो में लड़खड़ाता हुआ सा चलता हूँ,
तेरे प्यार के नशे का सब कसूर है।

ये जो रात रात भर जागता हूँ,
तेरे इश्क़ का सब कसूर है।

ये जो इतना तू तड़पाती है,
मेरी तारीफों का सब कसूर है।

ये जो तुझसे मिलने की तड़प है,
तेरी दीवानगी का सब कसूर है।

ये जो बैचैनी सी छायी है,
तेरी यादों का सब कसूर है।

ये जो हल्का हल्का दर्द है,
तेरी बेरुखी का सब कसूर है।

ये जो …..तू मुझसे इतना दूर है,
ये ना तेरा कसूर है…ना मेरा कसूर है।

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