कविता

अजय महिया छद्म रचनाएँ – 3

तेरी ज़ुल्फों का साया जो मिला होता
‌ मै इक पल वहां आराम से सोया होता

लेखक अज़य महिया

अब सत् और असत् मे द्वन्द्व होगा
‌‌‌धोखे और धोखेबाज़ से युद्ध होगा
अब याचना नही केवल रण होगा
या तो जीवन या फिर मरण होगा
अब अनीति पर जीत,जश्न न होगा
खड़्ग की नोक से अब सम‌ होगा

लेखक अज़य महिया

ये मासूम निगाहें,ये मासूम चेहरे,ये मासूम सी अदाएं ।
जाने कब, कैसे‌ खो गए उनकी जुल्फों के तराने ।।
हर चेहरा मुस्कान बिखेर रहा था उस दिवार मे ।
पता नहीं कहां खो गए वो मौसम पुराने

संगीतकार & गीतकार अज़य महिया

गर्दिशों की उड़ती गर्द मेरे अन्जुमन मे आ गिरी ।
सोचा अफ़साना हुआ है कुछ पर आफ़त आ गिरी ।।
सुनहरे सपने देखता रहता था मै रोज गुमसुम सा ।
उसकी यादों की आराईश मेरे हृदय मे आ गिरी।।

संगीतकार & गीतकार अज़य महिया

ओ सखी! हम तो इस कदर चोट खाए बैठे थे
तुमने आकर हमारा जख्म भर दिया ।
इस दर्द-ए-दिल की क्या दवा होती है
गुफ़्तगू ने तुम्हारी मुझे तैरना सीखा दिया

संगीतकार & गीतकार अज़य महिया

सादगी मे तेरी कयामत बिखर जाए
‌ रो दो तुम तो बारिश हो जाए
हम तो चलते हैं तेरी ज़ुदाई लेकर
‌ सिर्फ एक कप चाय हो जाए

संगीतकार & गीतकार अज़य महिया

दिल तो‌ दिवाने‌ देते‌ है साहब‌
हम तो शायर है केवल नजाक़त देते है

संगीतकार & गीतकार अज़य महिया

सड़क के‌ एक तरफ मै और दूसरी तरफ वो खड़ी थी।
शायद वो मुझे कुछ कह रही थी और मै सुन नही पा रहा था ।

संगीतकार & गीतकार अज़य महिया

एक खुशी अपनी जिन्दगी मे‌ पाई है मैने ।
इश्क की किताब से दूरियां बनाई है मैने ।।
क्या पूछते हो हमे ए दोस्त‌।।
तुम्हारी मौहाब्बत से ज़ुदाई तो पाई है मैने।।

अजय महिया – इश्क का राही

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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