कविता

वह आई

वह आई

वह हौले हौले आई
धीरे धीरे समाई
हृदयस्थल में मेरे
समाता है जैसे रस।

पकते फलों में
खिलते फूलों में
खजूर की बलियों में
तुम्हारा अबोध चेहरा।

जैसे गोद में सोया बच्चा
जैसे दूध पीता बछड़ा
तुम्हारी मधुर आवाज़
जैसे गुड़ की मिठास।

तुम्हारी निष्कपट हँसी
जैसे कलकल बहती नदी
पहाड़ से गिरता झरना
हँसी से काँपते होंठ
तुम्हारी छुअन
जैसे गुज़री हुई नागिन।

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