कविता

ये हाड़-मांस की कैसी भूख

ये हाड़-मांस की कैसी भूख

ये हाड़-मांस की कैसी भूख !
मृग-तृष्णा ये, दूर का सुख,
मत कर इसका व्यसन तू प्यारे,
कुत्ते की मत बन तू दुम ।

इंद्रियों को तू वश में कर,
लिप्सा में बिल्कुल मत फंस,
दलदल है ये बेहद गहरा,
जाएगा तू अंदर धंस ।

बाहर आना फ़िर नामुंकिन,
वासना का तू बनेगा जिन्न,
मन की बस पूजा कर प्यारे,
कामुकता में ना हो लीन ।

खोले लंपटता नर्क के द्वार,
जीते जी सब जाएगा हार,
फंस गया गर तू चंगुल में,
तेरा कर लेगी ये संहार ।

विलासिता तुझे लेगी डंस,
तुझे रुला वो लेगी हंस,
जितना जल्द, तू करले किनारा,
ज़हर घुलेगा हर नस-नस।

ध्यान केंद्रित कहीं और तू कर,
इसके चक्कर में मत पड़,
नष्ट करे दीमक के जैसे,
बहकाए ऐयाशी, लुभाए ठरक।

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

Related Posts

error: Content is protected !!