कविता

अजय महिया छद्म रचनाएँ – 6

अल्फ़ाज़ तो महज़ एक हवा का झोंका है
हमने तो बेवक्त भी जग को बदलते देखा है

अजय महिया

ये जो ठंडी-सर्द हवाओं की रातें है इन्हें गुज़र तो जाने दे |
फिर पता चलेगा तुम्हे ,मेरी मौहाब्बत की कीमत क्या है ||

अजय महिया

निकली हैं आँखे किसी को ढूंढने,लगता है कोई कहीं खो सा गया है |
प्यासी तो पहले भी थी ,लगता है अब जिम्मेदारी का अहसास हो गया है ||

अजय महिया

देश नहीं मैं दुनिया को स्वर्ग बनाने आया हूँ |
निराशा भरे हृदय में, मै आशा जगाने आया हूँ ||

अजय महिया

कहो तुम कौन शीतल छाया सी,मेरे हृदय स्थल में बैठी हो |
बारिश हो या हो पतझड़,जो यूं मेहमान
बनकर बैठी हो ||

अजय महिया

ये दिल के दाँहिनें कोने में बारिश की झड़ी-सी क्यों लगी है ||
मालूम है कि हम मिल नही सकते,फिर ये रात क्यों ढली है ||

अजय महिया

सपने बड़े अजीब होते हैं साहब

ऐसे-2 आते हैं जिनका सच होना भी एक सपना लगता है |

अजय महिया

उसकी एक सांस पर ज़िन्दगी बिछा दूं |
उसके हर ग़म पर अपनी ज़ान लूटा दूं ||
कोई तो है जो मेरे सपनों में आता है |
वो मुझे कहे तो उसे सांसों मे बसा लूं ||

अजय महिया

भूली-बिसरी यादों का झरोखा हूं मै,

कभी इन झरोखों से झांक कर देखो …

तेरा वज़ूद नज़र आएगा ।।

अजय महिया

माँ- मेरा हृदय है
तो बहन -मेरी सांस,
पिता मेरी धड़कन है
तो भाई मेरी ज़ान,
दोस्त मेरा घर है
तुम मेरी जहान् ।।

अजय महिया

मिले भी तो क्या हुआ,दिल तो अभी भी मेरा उदास है ।
मर गए तो क्या हुआ ,ज़ान तो अभी भी तुम्हारे पास है ।।

अजय महिया

तेरी उन आदतों को सुधार ऐ-मुसाफिर
जिन्होंने तुम्हे स्वार्थी बनाया है ।
प्रेम इतना कर प्रेममयी तपो सुन्दरी से
जिन्होंने तुम्हे जीना सीखाया है ।।

अजय महिया

दिल का दरिया है समन्दर मत बना देना ।
ए मेरे अज़ीज़,मुझे शराबी मत बना देना ।।

अजय महिया

मेरी तकदीर लिख दी उसने,किस्मत का दरिया बह रहा है ।
मुझे क्या तोड़ेगा ज़माना,मेरी माँ ने काला टीका लगाया है ।।

अजय महिया

वो मेरे हौसलों की उड़ान है, वो मेरी किस्मत की शान है
जिसने मुझे जगत् दर्शन कराए,वो माँ मेरी पहचान है ।।

अजय महिया

शरीर सो रहा है,नींद सुनहरे खराटे ले रही है ।
आत्मा जागी है,याद परमात्मा खोज़ रही है‌।।

अजय महिया

शब्दों की रोशनी से महफिल सज़ी है,फिर भी‌ दिल में अँधेरा-सा छाया है ।
उस छाया के एक कोने मे वो बैठे हैं,एक मे हमारी आत्मा का साया है ।।

अजय महिया

साखी‌ तेरी हुस्नबाज़ी‌ से,दुनिया मे कयामत आई है
आँखों मे नशा तेरे है और शराबी हम‌ कहलाए हैं ।।

अजय महिया

मै पी रहा‌ था कादंबरी, धराधारा कादम्बिनी की छाया मे ।
हंसोगे तुम मुझ पर, सोच कर सो गया मै मधुशाला मे ।।

अजय महिया

ईक चाली तू चल,चलत-चलत चली जाई
निस्स्वार्थ के पथ पर ,परकाज कर मुस्काई ।।

सोरठा, छंद ,अनुप्रास अंलकार

अजय महिया

जीने‌‌ के लिए मुझे अरमान दे दे ।
दिल की कलम से पैगाम दे दे ।।
नशा केवल शराब मे नहीं ए-हसीना ।
इसके लिए तो तेरा इशारा काफी‌‌ है ।।

अजय महिया

हर वक्त ईशारे नहीं होते,ईश्क मे मशवरे नहीं होते।
जो है मेरा,वो तुम से है,दिल में अंगारे नहीं होते ।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

हर वक्त ईशारे नहीं होते,ईश्क मे मशवरे नहीं होते।
जो है मेरा,वो तुम से है,दिल की आग में अंगारे नहीं होते ।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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