अजय महिया छद्म रचनाएँ – 6
भूली-बिसरी यादों का झरोखा हूं मै,
कभी इन झरोखों से झांक कर देखो …
तेरा वज़ूद नज़र आएगा ।।
अजय महिया
माँ- मेरा हृदय है
अजय महिया
तो बहन -मेरी सांस,
पिता मेरी धड़कन है
तो भाई मेरी ज़ान,
दोस्त मेरा घर है
तुम मेरी जहान् ।।
मिले भी तो क्या हुआ,दिल तो अभी भी मेरा उदास है ।
अजय महिया
मर गए तो क्या हुआ ,ज़ान तो अभी भी तुम्हारे पास है ।।
तेरी उन आदतों को सुधार ऐ-मुसाफिर
अजय महिया
जिन्होंने तुम्हे स्वार्थी बनाया है ।
प्रेम इतना कर प्रेममयी तपो सुन्दरी से
जिन्होंने तुम्हे जीना सीखाया है ।।
दिल का दरिया है समन्दर मत बना देना ।
अजय महिया
ए मेरे अज़ीज़,मुझे शराबी मत बना देना ।।
मेरी तकदीर लिख दी उसने,किस्मत का दरिया बह रहा है ।
अजय महिया
मुझे क्या तोड़ेगा ज़माना,मेरी माँ ने काला टीका लगाया है ।।
वो मेरे हौसलों की उड़ान है, वो मेरी किस्मत की शान है
अजय महिया
जिसने मुझे जगत् दर्शन कराए,वो माँ मेरी पहचान है ।।
शरीर सो रहा है,नींद सुनहरे खराटे ले रही है ।
अजय महिया
आत्मा जागी है,याद परमात्मा खोज़ रही है।।
शब्दों की रोशनी से महफिल सज़ी है,फिर भी दिल में अँधेरा-सा छाया है ।
अजय महिया
उस छाया के एक कोने मे वो बैठे हैं,एक मे हमारी आत्मा का साया है ।।
साखी तेरी हुस्नबाज़ी से,दुनिया मे कयामत आई है
अजय महिया
आँखों मे नशा तेरे है और शराबी हम कहलाए हैं ।।
मै पी रहा था कादंबरी, धराधारा कादम्बिनी की छाया मे ।
अजय महिया
हंसोगे तुम मुझ पर, सोच कर सो गया मै मधुशाला मे ।।
ईक चाली तू चल,चलत-चलत चली जाई
निस्स्वार्थ के पथ पर ,परकाज कर मुस्काई ।।सोरठा, छंद ,अनुप्रास अंलकार
अजय महिया
जीने के लिए मुझे अरमान दे दे ।
अजय महिया
दिल की कलम से पैगाम दे दे ।।
नशा केवल शराब मे नहीं ए-हसीना ।
इसके लिए तो तेरा इशारा काफी है ।।
हर वक्त ईशारे नहीं होते,ईश्क मे मशवरे नहीं होते।
अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
जो है मेरा,वो तुम से है,दिल में अंगारे नहीं होते ।।
हर वक्त ईशारे नहीं होते,ईश्क मे मशवरे नहीं होते।
अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
जो है मेरा,वो तुम से है,दिल की आग में अंगारे नहीं होते ।।
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