कविता

कर्मठ बनो

कर्मठ बनो

भूलना भूल जाओ सूली पर झूल जाओ,
दिन देखो ना रात अभी आंखों में तुम खून लाओ,
हरा भरा होगा सब जीवन बीज तुम्हारे अंदर है,
चेहरा और चमन चमकेगा एक बार बस खिल जाओ।

संघर्ष करो दृणता लाओ अपना घर आंगन महकाओ,
जैसे रस्सी काटे पत्थर ऐसे कर्मठ बन जाओ,
वक्त के दरिया पे तुम पत्ते जैसे रिल जाओ,
बस आंधी को छोड़ अभी तुम चट्टानों से मिल जाओ।

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

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