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कविता
वक़्त – कविता वन्दना जैन
वक़्त
बदलते हुए वक़्त मे मैंनेलाचार समुन्दर देखेपतवारों के इशारे औरलहरों के नजारे देखेनाचती हुई नावें देखीआँखें रुआंसी औरलब मुस्कुराते देखेमहलों मे बसते वीराने देखे रिश्तों की तंग गालियाँबचपन की मजबूरअटखेलियां देखीकई कहानियां!-->!-->!-->…
कोरोना में होली – कविता
कैसे खेलें हम ये रंग बिरंगी होलीजब दो गज दूर खड़ी हो हमजोलीलिए गुलाल हम गये छुने उसके गालरोक दिया उसने दुर से ही किया बबालबोली वो इस बार छूना नहीं,मजबुरी हैंकोरोना काल मैं दो गज दूरी जरूरी हैपूरे साल के इंतजार के बाद मौका आयाजालिम कोरोना!-->…
दल बदलने की रेलम पेल – कमल श्रीमाली
राजनीति में कभी इधर कभी उधर हो रहे हैंचुनाव आये हैं नेता इधर उधर हो रहे हैं
कैसे सिद्धांत, कैसी पार्टी, कैसी नैतिकताइधर नहीं मिला टिकट तो उधर हो रहे हैं
पता ही नहीं चल रहा है कौन किस पार्टी में हैसुबह किधर,दोपहर इधर,शाम उधर हो रहे!-->!-->!-->!-->!-->…
होली – कविता
खुशियों की रंगोली, 🌈समां में करुणा घोली,सारी नफ़रत धोली ।
मिटे गिले व शिकवे,चार चांद लगे शब पे,🌙🌙🌙🌙दुश्मन गए हैं छिप से, 🥵दोस्त मिले हैं दिल से । 💓
अनेकता में एकता, ✨नभ!-->!-->!-->!-->!-->…
भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक
भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक ..
तेईस मार्च,को गिरी थी गाज,था भगत को खोया,भस्म हिन्द का ताज ।
एक सच्चा सपूत,ईश्वर का दूत,उसकी कुर्बानी,कोई सके ना भूल ।
था ख़ुद को भूला,सदा देश ही सूझा,उस जैसा ना कोई,बस वतन की पूजा ।
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फागुन – (कविता)
भूली बिसरी यादों केकचे पक्के रंगों सेलौटे अनकहे कुछ गीतों सेभरा पूरा फागुन होकुछ आँखों के तीरों सेकुछ पलाश के कालीनों सेकापोलों को गुलालों सेरंग देने की उत्कंठा सेभरा पूरा फागुन होहोंठो की दबी मुस्कानों औरदिल मे दबे एहसासों कीभॅवरे सी!-->…
होली – कविता
होली
फिर मादकता की अंगड़ाई लेकर ,होली का पर्व आया हैआम्र कुंज से मुखर मुकुल का ,सौरभ पवन स्वयं लाया है ||
भूमि पर ज्योति की बांसुरी बजानेफूल के गांव में पांखुरी खिलानेहर किरन के अधर पर ,सरस तान यह लाया हैफिर मादकता की अंगड़ाई लेकर!-->!-->!-->!-->!-->…
दुनियादारी – (कविता)
उम्र के महल मे घूमती देह कोझुरियों की नजर लग गईमाथे की सिल्वटेंचिंता के सिलबट्टे पर पिस गयीजीवन की आधी रातें सोच विचार मेऔर आधे दिन बेकार हो गएजो थे आंचल के पंछीअब हवा के साहूकार हो गएहर रोज कहती है जिंदगी मुझसेजाओ तुम तो बेकार हो गएहम भी!-->…
उदासी – कविता
कुछ कह रही है ये उदासीबात मेरी भीसुन लो जरा सीमाथे पर नुमायां होतीलकीरेंभी कुछ कह रही हैंमौन का क्वच पहनेवाणी की तलवार भीहोंठो की मयान मे रखी हैऔरदिमाग के महलमे उलझे सवालों के रेशेसे बनी चादर ओढ़ेलेटी है..फिर चादर उठाझरोखे से झांकती!-->…
सुंदरता दिल से होती है
सुंदरता दिल से होती हैदिल सुंदर तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड भीसुंदर दिखाई देता हैदिमाग का केंद्र बिंदुबाहरी सुंदरता पर टिका होता हैवह नापता रहता हैदेह की लंबाई,परिधिउभारों मेऔर उलझा रहता हैअपनी गणित केप्रमेय और कठिन सवालों मे…नहीं परख पाता!-->…
लेकिन अधूरे इश्क़ का भी, एक अलग मजा है
लेकिन अधूरे इश्क़ का भी, एक अलग मजा है।
वो साथ में बिताए लम्हे, सभी को याद रहते हैं।वो टूटे हुवे सारे ख़्वाब, दिल में आबाद रहते हैं।इश्क़ में दिलबर की बाहों में, कैद हम थे कभी।दिलबर की उन बाहों से, अब आजाद रहते हैं।
समझ ना आए कि वो सजा!-->!-->!-->!-->!-->…
विकल्प – कविता (वन्दना जैन)
विकल्पअब क्या विकल्प हैस्वयं से संकल्प हैअंधेरों को विराम दूँचाॅद को सलाम दूँया तारों को लगाम दूँजीवन तो अल्प हैआशा ही कल्प हैअब क्या विकल्प हैजो दिखे सत्य हैछुपा हुआ कृत्य हैतन की फैली बाहें हैंमन की सिकुड़ी राहें हैंरिश्तों मे भेद हैहर!-->…
फिर से लिखने चली हूँ
फिर से शब्द संजोने लगी हूँफिर से पत्र लिखने लगी हूँ
इस बार थोडी चिंतित हूँशब्दों की लड़ाई से भयभीत हूँ
कुछ पुराने स्नेह से सने पुष्प सेकुछ नए बैरंग शुष्क कागजी सेइनके अंतर्द्वंद मे उलझ गयी हूँ
मन:स्थति उमड़ घुमड़ रही हैउंगलियों को!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
बस कलम यूँ ही चल पड़ती है मेरी।
बस कलम यूँ ही चल पड़ती है मेरी।
राह में चलते कभी, किसी का दीदार कर।बेवफ़ाई में कभी, कभी किसी के प्यार पर।भीड़ में कभी, तो कभी रात की तन्हाई में।किसी की मुस्कुराहट में, कभी रुसवाई में।
बस कलम यूँ ही चल पड़ती है मेरी।
कभी किसी को!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
वक़्त बदल रहा है।
वक़्त बदल रहा है।
ऐसा लगता है जैसे वक़्त बदल रहा है।
कई लोग हमसे बेवज़ह, दूर होते नज़र आ रहे हैं।हम भी ज़िन्दगी से, मजबूर होते नज़र आ रहे हैं।आज तक नहीं किया था, कोई ग़लत काम हमने।अब हर रोज हमसे ही, क़सूर होते नज़र आ रहे हैं।
ऐसा लगता है!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
ज़िन्दगी तू ही बता तुझ पर, कैसे एतबार करूँ
ज़िन्दगी तू ही बता तुझ पर, कैसे एतबार करूँ।कोई तो वजह हो ऐसी, कि तुझसे प्यार करूँ।
हर ख़्वाब, हर ख्वाहिश तो, तूने तोड़ दी मेरी।बता ख़ुद को जीने के लिए, कैसे तैयार करूँ।
मेरे हर रास्ते पर तूने, कांटे ही कांटे सजा दिए।इतने दर्द के बाद भी,!-->!-->!-->!-->!-->…
गांधी के सपनों का ,उड़ता नित्य उपहास है
गांधी के सपनों का ,उड़ता नित्य उपहास है
वही पालकी देश कीजनता वही कहार हैलोकतन्त्र के नाम परबदले सिर्फ सवार हैंराज है सिर्फ अंधेरों काउजालों को वनवास हैयहाँ तो गांधी के सपनों काउड़ता नित्य उपहास है ||
महफ़िल है इन्सानों की ,निर्णायक!-->!-->!-->!-->!-->…
नारी तू भव की आधारशिला – कविता
|| नारी तू भव की आधारशिला ||
शोभा कि नदी, सगुणों से सजी
प्रेम-करुण की तू सीमा,
स्तुति तेरी किन शब्दों में
जग में न तेरी कोई उपमा ||
दर्पण सा मन, निरूपण-निरूपण
शामक भी, हर किरदार में तू,
नारी तू भव की आधारशिला
दूजी न!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
समय का पहिया
समय का पहिया
मानो तो मोती ,अनमोल है समय
नहीं तो मिट्टी के मोल है समय
कभी पाषाण सी कठोरता सा है समय
कभी एकान्त नीरसता सा है समय
समय किसी को नहीं छोड़ता
किसी के आंसुओं से नहीं पिघलता
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
अब तो ….. (कविता)
अब तो …..रिश्तों में मिलावट है,मुस्कान बस बनावट है,आहट की ना चाहत है,ख़ुद से ही बग़ावत है ।
ना जाने …क्यूँ बदल गए इतने हैं हम ?कहाँ गए अश्क़ वो थे जो नम ?क्यूँ मतलबी हो गए हम हरदम ?क्यूँ पैर नहीं अब जाते हैं थम ?
किस बात की दौड़ ?क्यूँ!-->!-->!-->!-->!-->…