कविता रीझ-रीझ कर खीझ रहा हूँ By लाल बिहारी मिश्र "निराश पथिक" Share रीझ-रीझ कर खीझ रहा हूँ , जब से जग में होश संँभाला । प्रेम पुरातन याद नहीं अब, जब से छूटा साथ तुम्हारा ।। Related Posts अजय महिया छद्म रचनाएँ – 3 जनवरी 1, 2021 आओ सब मिलकर नव वर्ष मनाएं जनवरी 1, 2021 कविता : मोहब्बत {प्रभात पाण्डेय } दिसम्बर 23, 2020 हम भूले तो तुम भी भूले, हारे की मत बाट जोहना । हम भी तेरे, माया तेरी , देर नहीं, झट मिलो मोह ना ।। कविता Share FacebookTwitterWhatsAppTelegramLinkedinEmailPrint
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