मेरा गाँव मुझ में बसता है
मेरा गाँव मुझे में बसता है आज के जमाने में गाँव जाने को मना कौन करता है। जिसको देखो वो भी शहर की चकाचौंध पर भरता है ।। मेरा गाँव मुझे में बसता है…..
मैं रह लूं चाहे शहर की अमरचुबी इमारतों में। छु लू फलक या बैठूं महंगी कारो में ।। मेरा मन सिर्फ मेरी गाँव की गलियों मे हंसता है ।। मेरा गाँव मुझे मे बसता है…
याद है हमें वह पीपल की मीठी छाव । और भुले नहीं चारपाई का वो आराम ।। आज भी दिल में उसका आमास होता है।। मेरा गाँव मुझ में बसता है





































