कविता

अजय महिया छद्म रचनाएँ – 10

नज़र उठाकर देखा जिसे,वो हुस्न वाले बङे महफ़ूज़ निकले |
क्या सुनें उनकी अदाओं की गुस्ताख़ियां,वो ख़ुद बेजूबां निकले ||
अरे! लूट गई सबकी कस्तियां,वो दर्दे-मोहब्बत के शायर निकले |
सोचा उनकी शायरी से तर जाऊं,पर ख़ुद मझधार में डूबे निकले ||

अज़य महिया

प्यार तो ऐतबार का होता है साहब
परदे के पीछे बहोत धोखेबाज रहते है |

अज़य महिया

हसीन रातों की चाँदनी हो तुम
खोई हुई राहों की मंजि़ल हो तुम
कितनी बसी है दिल में सूरत तेरी
बस मेरे दिल की धड़कन हो तुम

अज़य महिया

हक़ीकत को लफ़्ज़ों बयां कर पाऊं,ऐसा थोङी हूँ मैं |
हाथ पकङकर मझधार मे छोङ दूं ,ऐसा थोङी हूँ मैं ||

अज़य महिया

कितनी हसीं होती रातें,यदि मोहब्बत का इज़हार कर देते |
पायल,चूङी,कंगन,नूपुर सब ला देता,यदि तुम बयां कर देते ||

अज़य महिया

मोहब्बत उम्र का तकाज़ा नही है जनाब,
जिसे किसी तराजू मे तौला जाए |

अज़य महिया

उसे शकुं तो अब आया होगा
आजकल बदले बदले लगते है |

अज़य महिया

चांद_सितारों को तोङना तो कोई हमसे सीखे |
जज़्बातों से खेलना कोई इन हुस्न वालों से सीखे ||

अज़य महिया

ना शिकवे हैं किसी से,ना किसी से गिले हैं |
ज़िंदगी की हर मोङ पर धोखेबाज़ मिले हैं ||

अज़य महिया

आसमान से छिनकर तारों को,तेरे माथे की बिन्दियां बना दूं |
हा-ना,ऊंहूं ये सब क्या है,तू कहे तो तुझे ताजमहल बनवा दूं ||

अज़य महिया

कितनी काली है ये रात और हो रही है बरसात |
कङक रही है बिजली और जल रहे है जज़्बात ||
सूनी है ये महफिल तुम्हारे बिना,आ रही है याद |
आज फिर लौट आओ ऐसी ही थी वो पहली रात ||

अज़य महिया

कितनी महफिलें और सजेगी लूटने के लिए
हम तो पहली ही मुलाकात में लुट गए थे

अज़य महिया

ज़िन्दगी अकबरी लोटे के समान हो गई है |
कभी इस पर,कभी उस पर,ठहरती ही नही है||

अज़य महिया

दिल में बिजली-सी कङकने लगी है
तुम बारिश बनकर आ रहे हो क्या ||

अज़य महिया

सोचा दोस्तों से शिकायत करूं तेरी बेवफाई की |
फिर समझ आया वो खुद बेवफाई के मारे बैठे है ||

अज़य महिया

ये जो इधर है वो ऊधर भी होगा,
ये जो ऊधर है वो इधर भी होगा |
इश्क की इस रंगी महफिल मे ,
कोई दोस्त शायर ही तो होगा ||

अज़य महिया

शब्द
वो ह्रदय भेदी बाण है जिसको
चलाने से पहले खुद सोच लेना
चाहिए कि
मुझमें कितने बाण सहने की
ताकत है |

अज़य महिया

कितना इंतज़ार करता हूँ कैसे बताऊं
बस तुम समझो जब नहीं बोलते हो
तो हमारी ज़ान निकल जाती है

अज़य महिया

मोहब्बत कोई काँच की बोतल नहीं,
जिससे गुस्से में आकर फोङ दिया जाए |

अज़य महिया

उसकी आंखों मे एक चमकती रोशनी बन जाऊं |
वो हां कहे तो कश्मीर से कन्याकुमारी घुमा लाऊं ||

अज़य महिया

तुम मेरी ज़िन्दगी हो,तुम मेरी पहचान हो |
सुनो ! रूठा मत करो ,तुम मेरी ज़ान हो ||

अज़य महिया
मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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