कविता

“छ: वाणी”

“छ: वाणी”

छ: बोले कोई सुनो हमारी
भाड़ में जाए दुनिया सारी

गोल गोल लोग मुझे घुमाते
उल्टा लटकाकर नौ बताते
क्रिकेट में मुझको सिक्स बताते
विक्स एड में मुझे दिखाते।

घड़ी है जब भी छ: बजाए
दोनों सुइयां सीध पे आएं
डूब तब झटपट सूरज जाए
काम छोड़ सब घर को जाएं।

साल का जब छटा महीना आता
बच्चों को ये खूब लुभाता
सूरज अपना ताप दिखता
सब लोगों के छक्के छुड़ाता।

छ: दिन करो हफ्ते में काम
सातवे दिन फिर करो आराम
छुट्टी का जब दिन है आता
सब लोगों के मन को भाता।

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

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