शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’ – छद्म रचनाए – 1
मैं नया सुनाने वाला हूं कविताओं का प्याला हूं
शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’
रोजगार का नाम नहीं है सीरत से नाकारा हूं
अजब गजब यहां रंग हैं छाए इन सब में मैं काला हूं
कविता सुनना मेरी दिल से मैं पूरा दिलवाला हूं।
लिखा जो भी है मैंने वो मेरी सौगात कहता है
शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’
हर एक पन्ना मेरे जीवन का ये हालात कहता है
लोग पूछते हैं तुम कहां से हो ये सब लिखते
ये हकीकत से है सब निकला हृदय की बात कहता है।
रुक जाओगे दो पल तो पतझड़ भी आ जायेगा
शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’
नहीं रुकोगे कुछ पल तो सामियाना छाएगा
होगा चारों ओर अंधेरा झींगुर भी चिल्लाएंगे
अगर वो मंजिल पा ली तो सब रोशन खुल जाएंगे।
टैलेंट यहां कम दिखता है
शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’
जिस्म यहां बस बिकता है
हर तरफ यहां है धूल जमी
नंगा हर एक रिश्ता है।
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