उम्र के महल मे घूमती देह को
झुरियों की नजर लग गई
माथे की सिल्वटें
चिंता के सिलबट्टे पर पिस गयी
जीवन की आधी रातें सोच विचार मे
और आधे दिन बेकार हो गए
जो थे आंचल के पंछी
अब हवा के साहूकार हो गए
हर रोज कहती है जिंदगी मुझसे
जाओ तुम तो बेकार हो गए
हम भी ठहरे निरे स्वाभिमानी
लगा ली दिल पर चोट गहरी
उठा कर पोटली अपनी
महल से बाहर हो गए
अब भटक रहे हैं
थोड़ा सटक गए हैं
अब कंठ की अवाज लिख देते हैं
कुछ विशेष तो हासिल हुआ नहीं
बस कुछ लोगों के दुलार मिल गए
कुछ कच्चे पक्के रिश्ते पकाए
कुछ को हमने पीठ दिखाई
और कुछ के राजदार हो गए
रास नहीं आती अब ये दुनियादारी
लोग कहते हैं कि हम बीमार हो गए हैं.
दुनियादारी – (कविता)
Related Posts
कलियुग – कविता
कलियुग सब खेल विधाता रचता हैस्वीकार नहीं मन करता हैबड़ों बड़ों का रक्षक कलियुगयहां…
युवा का अब आगाज हो
युवा का अब आगाज हो युवा का अब आगाज हो,एक नया अन्दाज़ हो,सिंह की आवाज हो,हर युवा…
ना तेरा कसूर है…ना मेरा कसूर – बृजेश यादव
ये जो मदहोशी सी छायी है, तेरे हुस्न का सब कसूर है। ये जो खोया खोया सा मैं रहता…
मुझको उम्मीद…
मुझको उम्मीद… संकट की घड़ी,है आन पड़ी । है वक़्त विकट,है डर, दहशत । तू जीतेगा,गम…
कविता -मै लक्ष्मी दो आँगन की
कविता -मै लक्ष्मी दो आँगन की बेटी बन आई हूं मै जिस आशियाने के आँगन में ।बसेरा…
पन्द्रह अगस्त की उस गाथा को, हम यूं ही नहीं गाते हैं।।
बहुत कठिन था वो दौर,जिसको आज हम याद करते हैं ।पन्द्रह अगस्त की उस गाथा को,हम…
एक दीया वहां भी – ईश शाह
क्यों घर यूं ही लौटते हो काकाकुछ दीये हम भी ले लेंगेक्यों खामोश बैठे हो…
मैं नहाया नहीं पिछले रविवार से
मैं नहाया नहीं पिछले रविवार से भिं भिना कर उड़ गई है मक्खी मेरे कान सेहूं नहाया…
मैं भस्म करूँ क्या रावण को
मैं भस्म करूँ क्या रावण को मैं भस्म करूँ क्या रावण को !मुझमें ख़ुद ढेरों रावण…
मन का शोर – शशिकांत सिंह
बिन पूछे सदा जो उड़ता ही चलेएक पल को भी कभी जो ना ढलेहै अटल ये टाले से भी ना…
आदमी (कविता)
आदमी कहीं खो गया है आभासी दुनिया में आदमीझुंठलाने लगा है अपनी वास्तविकता को…
मजदूरों की कहानी।।
एक मजदूर की ज़िन्दगी, कुछ शब्दों में सुनानी है। ध्यान से पढ़ना, ये एक मजदूर की…
एकांत – कविता
एकांत जाने कैसे लोग रहते हैं भीड़ में,हमें तो तन्हाई पसंद आई है । अकेले बैठ के…
दारू पर टिकी अर्थव्यवस्था
दारू पर टिकी अर्थव्यवस्था जिसके घर आना शुरू हुई ,उस घर की खुशियां चली गई। दारू…
रीझ-रीझ कर खीझ रहा हूँ
रीझ-रीझ कर खीझ रहा हूँ , जब से जग में होश संँभाला । प्रेम पुरातन याद नहीं…
अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 12
उत्तम कितने भी हों विचार,सार्थक तभी जब दिखे प्रभाव,झलक दिखे गर आचरण में तो,कथनी…
26 नवम्बर की स्याह रात ..
26 नवम्बर की स्याह रात .. (शहीदों को श्रद्धांजलि, दिल से अर्पित…
कलम – (कविता) अभिनव कुमार
कलम ✍🏻 छोटी बहुत ये दिखती है, प्रबल मग़र ये लिखती है,बड़ों बड़ों को…
चार पंक्तिया
हमने चार पंख्तियाँ क्या लिख दीं लोगों ने कवि बना दिया भरे बजार में हाले-दिल का…
दादी कहानी सुनाओ ना !!
दादी कहानी सुनाओ ना !! दादी मां दादी मां कहानी एक सुनाओराजा रानी घोड़ा गाड़ी की…






































