कविता

अजय महिया छद्म रचनाएँ – 11

तेरी ज़िन्दगी का हर मोङ सुकुन से भरा होगा |
मै नहीं तो कोई और तो तुझ पर मरा होगा |

अज़य महिया

ग़फ़लत मे बिता दी उम्र सारी,

उसकी तरहा ज़िन्दगी भी बेवफा निकली |

अज़य महिया

ज़िन्दग़ी की तलाश अभी बाकी है,हसरतों का जवान होना बाकी है |
होने को तो सब कुछ है हमारे पास,बस एक महबूब की तलाश बाकी है ||

अज़य महिया

नशा हुस्न का हो या शराब का,मज़ा तो अवश्य आता है
अक़्सर बहक जाते है वे लोग,जिसे नशा प्यार का हो जाता है||

अज़य महिया

किताबों को भावनात्मक व ज्ञानात्मक रूप से पढने पर मनुष्य में दया,सेवा,परोपकार,अहिंसा,सत्य आदि ऐसे गुणों का विकास होता है जो जीव को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं |

अज़य महिया

जब से तुमने रात में जागना शुरू किया
तेरी कसम ! चांद भी तेरा दिदार करने लगा है ||

अज़य महिया

आज मुद्दतों से देखा था उसे मेरे घर की गली से गुजरते हुए
ऐसा लगा जैसे ईद का सुनहरा चांद निकला हो कहीं से

अज़य महिया

वो मुझे कहने लगी कि तुमसे मोहब्बत हो गई है
मैने बङी सीदत से कह दिया कीमत बढ गई है

अज़य महिया

उसकी रूह मे दरिया उतरना अभी बाकी है
हमारी ख़ामोशी की आशिक़ी अभी बाकी है |

अज़य महिया

ज़िन्दग़ी की कशमकश में,रास्ते नज़र आएंगे |
मेहनत करो बङी ही सीदत से तुम दिन-रात,
आज नहीं तो कल अच्छे परिणाम जरूर आएंगे ||

अज़य महिया

तारों को तोङकर तेरी पायल बनवा दूं
आसमान में तेरा झूला लगवा दूं |
हां,ना,हां,ना,ऊंहूं-हूं ये सब क्या है,
तू कहे तो तुझे ताज़महल बनवा दूं ||

अज़य महिया

ऐ-मौत तू इतनी सादगी से आना,
कि किसी को कानों-कान भी ख़बर न लगे |

अज़य महिया

हर सफर का कोई तो हमसफर होता है|
तुम नहीं हो सकते पर खुदा तो होता है ||

अज़य महिया

उम्मीदों को ताक पर रखकर तुम से इश्क लङाया है |
कुछ कम,कुछ ज़्यादा, बस ईतना ही हक जताया है ||

अज़य महिया

शिक्षा है स्वर्ग द्वार
इसे बनाओ अपना हथियार

अज़य महिया

ये गुफ़्तगू करना बंद क्यों नहीं करते हो तुम,
क्या फिर से शबे-ग़म की महफिल सजानी है |
हेलो,हाय,हाऊ,कौन,कहाँ से, ये सब क्या है,
क्या अब हमे बरबाद करने की मन मे ठानी है ||

अज़य महिया

मैं कवि नहीं हूँ,बस एक पागलपन-सा छाया है |
कपोल-कल्पित कल्पनाओं को शब्द बनाया है ||
लोग भूल जाएंगे इस हाल-ए-सूरत को जहां मे |
बस यहां एक अक्षर ही तो नहीं मिट पाया है ||

अज़य महिया

ये बंदिशें,ख्वाहिशें,महफिल,महखानें सब रहेंगे,
बस जहां मे हम नहीं हमारे शब्द लिखे रहेंगे |

अज़य महिया

शिक्षा का करो प्रचार
रोशन होगा घर-परिवार

अज़य महिया

ये रात की गुफ़्तगू अच्छी नहीं होती,
ये शाम की महफिल अच्छी नहीं होती |
कर दो इश्के-राही को शामो-ख़बर,
यूं हर बात दिल में छिपानी अच्छी नहीं होती ||

अज़य महिया
मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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