एक उसके लिए मैने कितनों से मुँह मोड़ा है,
पर परवाह कहाँ इस मतलबी ज़माने मे उसे हमारी,
उसने तो एक असली शायर से मुँह मोड़ा है।
पहचान कर भी नज़र अंदाज कर उसने मेरा दिल चूर–चूर कर तोड़ा है,
अहंकार नही है मुझमे, कोशिश पूरी थी मेरी।
अगर अब की बार भी उसने मुँह मोड़ा है,
तो समझ लेना कि शायर ने दिल से, जीवन भर के लिए उसे छोड़ा है।
एक उसके लिए मैने कितनों से मुँह मोड़ा है
Related Posts
ना तेरा कसूर है…ना मेरा कसूर – बृजेश यादव
ये जो मदहोशी सी छायी है, तेरे हुस्न का सब कसूर है। ये जो खोया खोया सा मैं रहता…
प्रार्थना – आए सद्बुद्धि
प्रार्थना - आए सद्बुद्धि… सन्यासी "साधु",है देश का जादू । संस्कृत…
हिंदी दिवस के विचार – ‘अभिनव’ सार
जिन्हें याद नहीं पूर्ण वर्णमाला,उन्हें हिंदी दिवस की शुभकामना । उपरिलिखित से मैं…
अज़य महिया छद्म रचनाएँ – 16
मुझे किताबों ने क्या सीखाया और क्या सीखा रही हैं, मैं ब्यां नहीं कर सकता,यदि…
चार पंक्तिया
हमने चार पंख्तियाँ क्या लिख दीं लोगों ने कवि बना दिया भरे बजार में हाले-दिल का…
कविता- प्रण हमारा – अज़य महिया
बारिशों के मौसम में वो ,जा बैठे कहींवो हमे छोङ कर ,दिल लगा बैठे कहीं सपनों का ये…
लडकी की व्यथा कथा
लडकी की व्यथा कथा- कूडे के ढेर में, पाॅलीथीन में बंधी ,
अब सूरज से मिलने जाना है ☀️ – चंद्रयान – अभिनव कुमार
चंद्रयान तीन,नहीं होए यकीन,अद्भभुत उपलब्धि,एक रात और दिन ! फतह लक्ष्य महान,फूंक…
।। समझ बैठे ।। कविता || शशिधर तिवारी ‘ राजकुमार ‘
।। समझ बैठे ।। तेरी सारी ख्वाहिशों को , हम हमारी रहमत समझ बैठे। तेरी होंठो की…
भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक
भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक .. तेईस मार्च,को गिरी थी गाज,था भगत को…
मन का शोर – शशिकांत सिंह
बिन पूछे सदा जो उड़ता ही चलेएक पल को भी कभी जो ना ढलेहै अटल ये टाले से भी ना…
राम राज्य – कविता अभिनव कुमार
राम राज्य,बजें ढोल नगाड़े,दुर्जन हैँ हारे,हैं राम सहारे । नस नस में राम,बसे हर कण…
कविता : यह कैसा धुआँ है
कविता : यह कैसा धुआँ है लरजती लौ चरागों की यही संदेश देती है अर्पण चाहत बन जाये…
युवा का अब आगाज हो
युवा का अब आगाज हो युवा का अब आगाज हो,एक नया अन्दाज़ हो,सिंह की आवाज हो,हर युवा…
हम – कविता
हम चाय के शौकीन हमधुन में अपनी लीन हमजब लगेगी अपनी किस्मतहोंगे तब रंगीन हम छा…
सुशांत का दुखांत
सुशांत का दुखांत हूं मैं निशब्द,बिल्कुल ही स्तब्ध,जब चला पता,सुन्न, स्थिर, हूं…
अभिनव कुमार छद्म रचनाएँ – पर्यावरण
जीव जन्तु,जैसे शिव शंभू,बचाते पर्यावरण,ना किन्तु परन्तु ।अभिनव कुमार दो हाथ जब…
रोहित सरदाना – अश्रुपूर्ण भावभीनी श्रद्धांजलि अभिनव
रोहित सरदाना,शख़्स जाना माना,कहीं चला गया,पता नहीं कहां ! था बड़ा सटीक,छवि बेहद…
मुझको उम्मीद…
मुझको उम्मीद… संकट की घड़ी,है आन पड़ी । है वक़्त विकट,है डर, दहशत । तू जीतेगा,गम…
रावण – छद्म रचनाये – अभिनव कुमार
काश कि कुछ ऐसा हो जाए,रावण को सद्बुद्धि आ जाए,ख़ुद भी जिए, जीने दे दूजा,ज्ञान को…