कविता

अजय महिया छद्म रचनाएँ – 5

हर सुबह का धूआं कोहरा नहीं होता है ।
हर रात का चन्द्रमा काला नही होता है ।।
बीत जाते हैं ज़िन्दगी के हसीन पल भी ।
हर दिन नए साल का सवेरा नहीं होता ।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

दिल की धड़कनें ,रातों की नींद,मेरा चैन ले गई ।
इक खुबसूरत कली मुझे अपनी किताब दे गई ।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

दिल जल रहा है मेरा,जाने क्यों आग-सी लगी है ।
ये मोहाब्बत का ज़ादू है,या कोई ख़ुदा का करिश्मा ।।

जहां भी जाता हूं वहीं कोहरा-सा छाया रहता है ।
ये तेरी यादों का धूआं है या किसी रात का अंधेरा ।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

कृष्ण-सा हूं मै तुम गोपी बन जाना
दोस्त नहीं बन सको तो दुश्मन मत बन जाना

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

हरसतें रह गई,रह गई तन्हा भरी यादें ।
इन लूटरों,वहशी दरिंदों से दूर रहना तुम,
यही है मेरी प्यार-मौहब्बत भरी बातें ।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

जब सो गए हम ,तो लोगों ने अपना समझ लिया
जब जागे हम , तो दुनियां ने बेगाना समझ लिया
जज्बा है हौसला है ,कुछ कर गुजरने का देश के लिए
इसीलिए तो हमने देश सेवा(फौजी) का रास्ता चून लिया

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

मेरी यादों को इतना शरद मत बनाओ,
आजकल रात बहुत ठण्डी है ठिठुर जाओगे

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

पता नही क्या ज़ादू है तेरी नज़रों में,
जब भी उठती है कत्ल कर‌ देती है ।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

वो इश्क बेमिसाल था,हुस्न-ओ शबाब था ।
एक वो थी,एक था मै,यही हमारा मकान था।।

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

मुरली छुपावत कन्ह की , सारी सखि मुस्काय‌ ।
मानो कलानिधि क्ष्मा तै ,अमिय रहा बिखराय ।।

उत्प्रेक्षा अलंकार

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

मै चाहता इस संसार में,सत्य का गुणगान हो ।
झूठे-धोखेबाज़ों का इस,धरती पर श्मशान हो ।
जो खड़ा रहे अटल धर्म पर,उसी का कल्याण हो ।
करते हैं प्रेम सभी से बस ,उन्ही का सम्मान हो ।।

हरिगीतिका छंद

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़

चांदनी रात सोहनी ,मुरली रहा बजाय ।
मोर-पपीह शोर करे,प्रियन रह्या बुलाय ।।

दोहा छंद

अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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