स्त्रियां
जलप्रपात सी बजती छन-छन
उछलती मचलती सरस सी जलधार
सहज ,शीतल,सफ़ेद मोतियों का कंठ हार
प्रेम में मधुछन्द सी गूंजती
कभी भय लिप्त हो आँखें मूंदती
मानसिक उद्वेग को सागर सा समेटती
स्वयं की लिखी अनबुझ पहेली सी
व्यक्त होती अव्यक्त सुन्दर लिपि सी
भ्रान्ति में जीकर कांति से उद्दीप्त
क्रांति को कांख में दबाए
मेघों को दामिनी बन उलाहना देती
चमकती-दमकती,फिर छुप जाती
घर्षण से पिघल कर कपोलों पर फिसलती
मन के उद्वेगों को जकड कर
योद्धा बन मुस्कुराती
शब्दों को मौन की नैया में बैठा कर
आँखों के कोरों तक विदा कर
जीत सहेज कर लौट आती है
स्त्रियां कितना स्वयं को छिपाती हैं
विस्तृत होकर भी तिरस्कृत है
चमत्कृत होकर भी अतृप्त रह जाती हैं
स्त्रियां – कविता – वन्दना जैन
Related Posts
फागुन – (कविता)
भूली बिसरी यादों केकचे पक्के रंगों सेलौटे अनकहे कुछ गीतों सेभरा पूरा फागुन!-->…
ना तेरा कसूर है…ना मेरा कसूर – बृजेश यादव
ये जो मदहोशी सी छायी है, तेरे हुस्न का सब कसूर है। ये जो खोया खोया सा मैं रहता…
चुनावी मौसम
चुनावी मौसम चुनाव का मौसम आयाजन जन पर देखो छायाहोय सूट बूट या फटा पैजामासबका!-->!-->!-->…
कोरोना में होली – कविता
कैसे खेलें हम ये रंग बिरंगी होलीजब दो गज दूर खड़ी हो हमजोलीलिए गुलाल हम गये!-->…
मन का शोर – शशिकांत सिंह
बिन पूछे सदा जो उड़ता ही चलेएक पल को भी कभी जो ना ढलेहै अटल ये टाले से भी ना!-->…
युवा का अब आगाज हो
युवा का अब आगाज हो युवा का अब आगाज हो,एक नया अन्दाज़ हो,सिंह की आवाज हो,हर!-->!-->!-->…
ज़िन्दगी का गीत गुनगुनाते चलो
ज़िन्दगी का गीत गुनगुनाते चलोसफर को हमसफर बनाते चलो ।हर ग़म से भी बे'ग़म!-->…
सगी नहीं परायी ही सही
सगी नहीं परायी ही सही ,काश कोई मेरी भी बहन होती !! हर बात पर चिढ़ती, हर बात पर!-->!-->!-->…
अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 3
सीधी बातों को भी उल्टा आंका,गोले बारूदों से मुझको दागा,अपने अंदर बिल्कुल ना!-->…
जिद है अगर तो जीतोगे
जिद है अगर तो जीतोगे उठ तैयार हो फिर हर बार, जितनी बार भी तुम गिरोगे,!-->!-->!-->!-->!-->…
चार पंक्तिया
हमने चार पंख्तियाँ क्या लिख दीं लोगों ने कवि बना दिया भरे बजार में हाले-दिल का…
दीदार ए इश्क
दिल पहली बार था धड़कामैं देख के उसको भड़कादेखा था उसको शादी मेंवो लगे नहाई!-->…
एकांत – कविता
एकांत जाने कैसे लोग रहते हैं भीड़ में,हमें तो तन्हाई पसंद आई है । अकेले बैठ!-->!-->!-->!-->!-->…
अजय महिया छद्म रचनाएँ – 2
वो कहने लगे हम सुनने लगेकिसको पता था वो इतना कह देंगेअरे! हम तो तन्हाइयों की!-->…
अज़य महिया छद्म रचनाएँ – 17
जब तू आएगी फिर से मेरे दिल-ए-द्वार पर,कसम से दरवाज़े बंद मिलेंगे अज़य महिया !-->!-->!-->!-->!-->!-->…
मुझको उम्मीद…
मुझको उम्मीद… संकट की घड़ी,है आन पड़ी । है वक़्त विकट,है डर, दहशत । तू!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
ग़म-ए-शायरी
ग़म-ए-शायरी दिल-ए-दर्द को शब्दों मे बयां कर दूंगा आंखों के आंसूओं को पन्नों!-->!-->!-->…
अभिनव कुमार छद्म रचनाएँ – पर्यावरण
जीव जन्तु,जैसे शिव शंभू,बचाते पर्यावरण,ना किन्तु परन्तु ।अभिनव कुमार दो हाथ!-->!-->!-->…
दुनियादारी – (कविता)
उम्र के महल मे घूमती देह कोझुरियों की नजर लग गईमाथे की सिल्वटेंचिंता के!-->…
राम राज्य – कविता अभिनव कुमार
राम राज्य,बजें ढोल नगाड़े,दुर्जन हैँ हारे,हैं राम सहारे । नस नस में राम,बसे हर!-->!-->!-->…