भूली बिसरी यादों के
कचे पक्के रंगों से
लौटे अनकहे कुछ गीतों से
भरा पूरा फागुन हो
कुछ आँखों के तीरों से
कुछ पलाश के कालीनों से
कापोलों को गुलालों से
रंग देने की उत्कंठा से
भरा पूरा फागुन हो
होंठो की दबी मुस्कानों और
दिल मे दबे एहसासों की
भॅवरे सी गूंजे गुनगुन हो
ऐसा इस बार फागुन हो
फागुन – (कविता)
Related Posts
अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 6
अल्फ़ाज़ तो महज़ एक हवा का झोंका हैहमने तो बेवक्त भी जग को बदलते देखा है अजय…
ना तेरा कसूर है…ना मेरा कसूर – बृजेश यादव
ये जो मदहोशी सी छायी है, तेरे हुस्न का सब कसूर है। ये जो खोया खोया सा मैं रहता…
तेरे शहर की हवाओं का रूख देखा है हमने
तेरे शहर की हवाओं का रूख देखा है हमनेहर गली-मौहल्ले की दिवारों को सुना है हमने…
कविता -मै लक्ष्मी दो आँगन की
कविता -मै लक्ष्मी दो आँगन की बेटी बन आई हूं मै जिस आशियाने के आँगन में ।बसेरा…
युवा का अब आगाज हो
युवा का अब आगाज हो युवा का अब आगाज हो,एक नया अन्दाज़ हो,सिंह की आवाज हो,हर युवा…
चार पंक्तिया
हमने चार पंख्तियाँ क्या लिख दीं लोगों ने कवि बना दिया भरे बजार में हाले-दिल का…
भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक
भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक .. तेईस मार्च,को गिरी थी गाज,था भगत को…
मेरी प्यारी बेटी
मेरी प्यारी बेटीनन्हे -नन्हे पग रखकर,जब चलती गुड़िया प्यारी।मुस्कान तेरी ऐसी,कि…
सत्य जीवन का
मै जीवन की आशाओं में खोया थामै ज़ीवन की निराशाओं मे रोया थाउस मौत-ए-महबूबा को…
राम राज्य – कविता अभिनव कुमार
राम राज्य,बजें ढोल नगाड़े,दुर्जन हैँ हारे,हैं राम सहारे । नस नस में राम,बसे हर कण…
अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 12
उत्तम कितने भी हों विचार,सार्थक तभी जब दिखे प्रभाव,झलक दिखे गर आचरण में तो,कथनी…
फ़र्क देखिए (1) बनाम (2) में ज़मीन आसमान का
फ़र्क देखिए (1) बनाम (2) में ज़मीन आसमान का :- (1) "चलो आज मुस्कुराते…
सूरज नये साल का
सूरज नये साल का - क्यों लगता है हमें कि, नये साल के सूरज की पहिली किरण, नई आशा …
मेरी नहीं बनती
मेरी नहीं बनती… मेरी नहीं बनती,ना भाई से, ना बाप से,ना तुम से, ना आप से,, ना…
मिलन को रास रचाता हों
नज़रों की सीमा से मीलों उपरकोई गीत मिलन के गाता हों। जहां सूरज बातें करता…
विश्व पुस्तक दिवस – संदीप कुमार
आज विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर कुछ पंक्तियां पेश हैं, गौर फरमाएं। आज बहुत याद…
मजदूरों की कहानी।।
एक मजदूर की ज़िन्दगी, कुछ शब्दों में सुनानी है। ध्यान से पढ़ना, ये एक मजदूर की…
जीवन – कविता
जीवनरोने से क्या हासिल होगाजीवन ढलती शाम नहीं हैदर्द उसी तन को डसता हैमन जिसका…
फायदा ही क्या है
बे'वजह ,असमय बोलने मे तेरा फायदा ही क्या है, अपनी कमजोरियों को दिखाने से…
मैंने देखा – कविता – शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’
मैंने देखामैंने देखा पंछी को और तिनके तिनके को लानावो धूप के दामन में भी तिनके…