कविता

मैं…ख्वाब…और जाम !

मैं…ख्वाब…और जाम !

चाहत की है बात नहीं
मैंने सब यूं ही छोड़ दिया
कैसे तेरे पास रुकूं
वेवजह कुछ करना छोड़ दिया

जब जब मैं जाता राह अटक
मैंने चांद निहारा सुबह तलक
सब ख्वाब हैं मेरे चुभन भरे
ये जानके सबको तोड़ दिया

टूटे ख्वाबों को मज़ार बना
हर रोज निहारा करता हूं
अपने जख्मों के रंगों का
हिसाब लगाया करता हूं

हर रोज नहीं मैंने अपनेपन को
अपना दामन पकड़ाया
यूं ही, बस मैं कभी कभी
जाम लगाया करता हूं।

© शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

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