कविता

कागज और कलम – वन्दना जैन

कागज और कलम

कागज और कलम
कलम का गिटार लेकर
थिरकने लगी मेरी उँगलियाँ
कागज के फर्श पर…
हृदय और मस्तिष्क के
सेतु पर झूलती हुई भवनाओं
के गीत गाती….

कलम का हल लेकर
ये बस निकल पड़ी है
बन कर किसान…
जोतने कागज का सीना…
शब्द  बीज अंकुरण की चाह मे
सींचती है संताप और हर्ष  के
अश्रुओं से…
अब ये सहमी सी नहीं
ना ही संकुचित है…

कलम की पतवार लेकर
भावनाओं की नाव मे सवार
निकल पड़ी है
कागज के सागर पर
शब्दों के मोती ढूंढने…
और पिरोने…. ✍️

वंदना जैन मुंबई निवासी एक उभरती हुई लेखिका हैं | जीवन दर्शन,सामाजिक दर्शन और श्रृंगार पर कविताएं लिखना इन्हे बहुत पसंद है | समय-समय पर इनकी कविताएं कई अख़बारों और पत्रिकाओं में छपती  रही हैं | इनका स्वयं का काव्य संकलन "कलम वंदन" भी प्रकाशित हो…

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