कविता

कहां गया जादूगर? रोहित सरदाना

रूपवान काया, सरस्वती का साया, संस्कारों की छाया, सन्तुलन था समाया ।

कहां गया जादूगर ?

रूपवान काया,
सरस्वती का साया,
संस्कारों की छाया,
सन्तुलन था समाया ।

दुर्लभ खज़ाना,
थे रोहित सरदाना,
पूरा जग था दीवाना,
तुम्हें अपना था माना ।

अपने ही दम पर,
पहुंचे तुम ऊपर,
पैर बड़ों के छूकर,
बने नामी एंकर ।

दमदार छवि थी,
तुम जैसे रवि थे,
तुमसे ही सभी थे,
जैसे साथ अभी थे ।

मुझे पढ़ थे लेते,
मेरी बात थे कहते,
मेरे आंसू जब बहते,
तुम चुप ना बैठे ।

मेरे हक़ की लड़ाई,
लड़ी तुमने भाई,
थी उम्मीद जगाई,
जीतेगी सच्चाई ।

बस सीधी बात,
ना कोई बक़वास,
थे ख़ासम ख़ास,
मुद्दे की तलाश ।

असली महानायक,
तुम मेरे सहायक,
मेरी नस नस,
तुम गए थे बस ।

जोखिम में जान,
ना है आसान,
मेरी ख़ातिर कमान,
ईश या इंसान ।

मद में ना उड़े,
थे ज़मीं से जुड़े,
मुँह कभी ना मोड़े,
हाथ हरदम जोड़े ।

शानदार व्यक्तित्व,
रिश्तों में घनत्व,
चाहे जो हो वक़्त,
सेवा-भाव हर पल ।

हर दिल पर राज,
होगी कोई तो बात !
बेबाक अंदाज़,
केवल इंसाफ़ ।

मुस्कुराहट नायाब,
गड्ढे हर गाल,
नयन कहते बात,
ज़ाहिर जज़्बात ।

ना नफ़ा नुकसान,
नेकी की मिसाल,
काबिलीयत पहचान,
सादगी को सलाम ।

ईमान सर्वोपरि,
अहमियत हर घड़ी,
वजूद से ना ठनी,
ज़िम्मेदारी सबसे बड़ी ।

जब तक थी साँस,
किए ढेरों प्रयास,
बचे किसी की जान,
यही आस अरमान ।

असामयिक निधन,
गमगीन हर मन,
ये क्षति सके न भर,
कहां गया जादूगर ?
कहां गया जादूगर ?

तुम जहां रहो,
बस ख़ुश रहो,
तुम्हें पाकर खो,
रहा हिन्द है रो ।

अश्रुपूर्ण भावभीनी श्रद्धांजलि 🙏🏻अभिनव ✍

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

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