कूडे के ढेर में,
पाॅलीथीन में बंधी ,
सोचती हूॅ कि मै,
कि, सुरक्षित हूॅ।
मगर, सिर्फ धूप और पानी से।
या, तब तक , जब तक कि,
कोई जानवर मेरी गंध को
सूधंकर मुझे, नोच नहीं खाता।
फिर सोचती हूॅ कि,
यदि मै, ले लेती आकार
तो क्या,सुरक्षित रह पाती?
शायद नहीं,
पाकर मुझे अकेली,
सडक पर या कहीं और,
कोई दरिंदा मेरी देह को,
नोंच नहीं लेता?
अब सोचती हूॅ, कि क्या
लडकी केवल नोंच खाने के,
लिये ही है होती ?
लडकी की व्यथा कथा
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