कविता

दीदार ए इश्क

दिल पहली बार था धड़का
मैं देख के उसको भड़का
देखा था उसको शादी में
वो लगे नहाई चांदी में

पहले प्यार का था पहला नशा
देख के मुझको वो था हॅंसा
वो काली साड़ी में इतराए
मेरा ब्लड प्रेशर बस बढ़ता जाए

दो नैना थे मतवाले
और पैरों में झंकारें
सब उसके हुए दीवाने
मैं भी था वहीं किनारे

वो हरदम ही मुस्काए
मेरे मन को भायी जाए
मैं दिल को था समझाए
पर दिल ये मचला हाए

मैंने सोचा उस से बोलूं
ये प्यार भरा दिल खोलूं
फिर सोचा मैं क्या बोलूं
कैसे मैं दिल को खोलूं

तब तक वो चल के आयी
और मुझसे थी टकराई
वो हाथों में थी मेरे
और हल्के से मुसकाई

मुझको कुछ समझ ना आया
मंदम उजियारा छाया
जब आंख खुली तो पाया
मुझको था सपना आया।

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

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