कविता

मैं तेरा ही हूँ मगर,
तेरा हो सकता नहीं

मैं तेरा ही हूँ मगर,
तेरा हो सकता नहीं !!

हाथ मेहंदी का था, जब मेरे हाथ में,
नजर झुकी थी मगर, कोई इशारा नहीं !
तुम तो सजती हो लेकर के अंगड़ाइयां,
बनकर जाओ दुल्हन ये गंवारा नहीं !!

मैं तेरा ही हूँ मगर,
तेरा हो सकता नहीं !!

याद आती है राते मुलाकात की,
बंद कमरे का कोई नजारा नहीं !
मानता हूँ गलती, सजा दो हमें ,
की, मांग सकू मैं तुझे दोबारा नहीं !!

मैं तेरा ही हूँ मगर,
तेरा हो सकता नहीं !!

वो तुम पायल की झनकार क्या जानोगी,
जिसने कभी भी प्यार से पुकारा नहीं !
जल रहा हूँ मैं अपनी ही जज़्बात में,
नजर भरके मैंने जिसे निहारा नहीं !!

मैं तेरा ही हूँ मगर,
तेरा हो सकता नहीं !!

तेरी हर दीवानगी का मैं कर्जदार हूँ,
प्यार कम था, तुम्हारा हमारा नहीं !
एक प्यार हैं ये, एक प्यार थी तुम,
फर्क बस इतना ये “तिवारी” तुम्हारा नहीं !!

तुझे भूल जाना मेरे ,
बस की बात नहीं !
मैं तेरा ही हूँ मगर,
तेरा हो सकता नहीं !!

शशिधर तिवारी "राजकुमार" एक सिविल इंजीनियर विद्यार्थी हैं जो मुंबई से पढ़ रहे हैं .वे इस नए दौर के कवि हैं जो समाज चल रहे अभी के माहौल और कॉलेज की गतविधियों पर कविता लिखना पसंद करते हैं. प्यार, मोहब्बत, दोस्ती ऐसे सभी मुद्दे पर अक्शर कविता लिखना…

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