कविता

सत्य जीवन का

मै जीवन की आशाओं में खोया था
मै ज़ीवन की निराशाओं मे रोया था
उस मौत-ए-महबूबा को भूलकर
मै कल उठने के लिए सोया था

रात के घनघोर अंधेरे मे किसी ने मेरे,
दिल-ए द्वार पर यकायक दस्तक दी
मै एकाएक चौंका और इज़्तिराब से
आंखें खोलकर उठ खड़ा हुआ

मैने पूछा-कौन है वहां,
मैने पूछा-कौन है वहां
किसने मुझे आवाज दी
पर वो कुछ ना बोल रहे

मै हताश,निराश-सा सोच रहा
कि अभी तो मै बालक हूं
फिर ये मेरे यहां कौन आया है

बाकी है अभी जवानी आनी
जहां मिलेंगे‌ बगिया और माली
जहां सपनो के बाग लगाऊंगा
जहां बैठकर मै राग सुनाऊंगा

मुझे आशाओं की किरणों को
अम्बर तक पहुंचाना है
अभी तो मै सोया ही हूँ
फिर ये कौन आया है

मै तड़फ रहा था
वो मुस्कुराते रहे थे
ना मै पूछ रहा था
ना वो कह रहे थे

तभी वो पास आए मेरे
मुझे पकड़ा और
कहने लगे-मै मौत‌ हूं

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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