कुछ कह रही है ये उदासी
बात मेरी भी
सुन लो जरा सी
माथे पर नुमायां होती
लकीरें
भी कुछ कह रही हैं
मौन का क्वच पहने
वाणी की तलवार भी
होंठो की मयान मे रखी है
और
दिमाग के महल
मे उलझे सवालों के रेशे
से बनी चादर ओढ़े
लेटी है..
फिर चादर उठा
झरोखे से झांकती है
देखती है
चेहरों के पीछे छुपे कई चेहरों
को.. आश्चर्य से
शून्य में कुछ खोजती
कभी किसी की हँसी से सहमी
कभी किसी के परिहास पर
फूटने को आतुर
आँखों के झरनों को
बांधे
दुपकी है खुद ही की बाहों मे….
सिमटी सी… उदासी
उदासी – कविता
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