कविता

अंतर ज़मीन आसमान का

अंतर ज़मीन आसमान का

एक सोया रहा दो महीने,
दूजे ने कसी कमर दो दिन में ।

एक ने किया बस वक़्त बर्बाद,
दूजे ने एक किए दिन और रात ।

एक ने बहुत फ़ैलाया रायता,
दूजा अपनाए कानून कायदा ।

पहले ने काटी बस घाँस,
दूजा सख़्त कड़ी पूछताछ ।

एक बना रहा धृतराष्ट्र,
दूजे के लिए – सिर्फ़ राष्ट्र ।

एक ने किया बस नज़रअंदाज़,
दूजे की कोशिश – खुलें राज़ ।

एक के कान पे जूँ ना रेंगे,
दूजा सारे दृष्टिकोण देखे ।

पहला करे सही भी अनदेखा,
दूजा सटीक, खींचे सही रेखा ।

एक ने साथ दिया जलेबी का,
दूजा दुश्मन फ़रेबी का ।

एक की कोशिश – मिटें सबूत,
दूजा वजूद में बेहद मज़बूत ।

एक आया दबाव में,
दूजा ना किसी बहकाव में ।

पहला बना कठपुतली मोहरा,
दूजा टस से मस ना ज़रा ।

एक की नीयत में केवल खोट,
दूजा करे काम डंके की चोट ।

एक की ख़त्म ना हो रही हठ,
दूजा कुशल निपुण कर्मठ ।

पहला कातिलों के सामने फिसड्डी,
दूजा – कातिलों के गले की हड्डी ।

पहले चाहे हो केस रफा दफा,
दूजा इंसाफ़ से चाहे फ़ैसला ।

पहला पक्षपाती, करे बईमानी,
दूजा अलग करे दूध पानी ।

एक घुसा डरके अपने बिल में,
दूजा बसा हर एक के दिल में ।

एक खो चुका सबका विश्वास,
दूजे बना उम्मीद व आस ।

एक बन गया जैसे दलाल,
दूजा ईमानदार दे डाली मिसाल ।

एक असुरक्षित, ना आए आंच,
दूजा कर रहा तटस्थ जांच ।

एक ने बेच डाला ज़मीर,
दूजा निष्ठावान ऊंचा अस्तिस्त्व ।

पहले के थे कदम डगमगाए,
दूजा आशा – दिलवाए न्याय ।

पहले ने बस किया गुमराह,
दूजा सुलझाए गुंजल जो स्याह ।

एक ने धूमिल की अपनी छवि,
दूजा दिवाकर दिनकर रवि ।

पहला बोला, था बेबस मजबूर,
दूजे को ना बिल्कुल बहाने मंज़ूर ।

दोनों में अंतर ज़मीन आसमान का,
एक करे शोषण, दूजा रामबाण सा ।

समझ गए होंगे आप इशारा,
कानून अंधा, रक्षक पर सहारा ।

आवाम की हिफाज़त सर्वोपरि,
देख अनौचित्य – है जनता डरी ।

कानून का सब पालन करें,
सब एक समान चाहे छोटे बड़े ।

काश राम राज्य लौट आए !
ना कोई पाप, सब पुण्य कमाएं ।

स्वरचित – अभिनव ✍🏻

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

Related Posts

error: Content is protected !!