विकल्प
अब क्या विकल्प है
स्वयं से संकल्प है
अंधेरों को विराम दूँ
चाॅद को सलाम दूँ
या तारों को लगाम दूँ
जीवन तो अल्प है
आशा ही कल्प है
अब क्या विकल्प है
जो दिखे सत्य है
छुपा हुआ कृत्य है
तन की फैली बाहें हैं
मन की सिकुड़ी राहें हैं
रिश्तों मे भेद है
हर थाली मे छेद है
सत्य से अज्ञान हैं
झूठ को अभिमान है
अब क्या विकल्प है
विकल्प – कविता (वन्दना जैन)
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