कविता

जीवन या कहर

जीवन या कहर

ये काली घटा कांटों का महल
ये जीवन है या कोई कहर
टूटा है बनके पहरा यूं
जैसे पी लिया हो कोई जहर

क्यों मंदम हवा है वहकी सी
और वीरानगी भी चहेंकी सी
पीतल का निकला हर वो महल
जिसे सोचा स्वर्ण महल हमने

कहीं दूर से आती एक आवाज़
जहां दफ़न हैं कई हजारों राज
उस घाटी का है अलग चमन
जहां वीराना भी लगे अमन।

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

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