कविता

ये शाम भी ढल जाएगी

ये शाम भी ढल जाएगी …

अपने से ज़्यादा,
हो दूजे का ध्यान,,
यही बस करना,,,
है सबको श्रीमान ।

कोशिश ना बने,
कोई किसी का कैरियर,,
सब्र का इम्तिहान,,,
सबसे बढ़िया घर ।

तप का मौका,
कर दिखाएं सब,,
ख़ुद भी रहें स्वस्थ,,,
औरों को भी समझाएं हम ।

जाने अनजाने में,
ना हो जाए गलती,,
भूल सुधारें,
हम जल्दी जल्दी ।

घूमने का क्या है !
कल भी घूम लेंगे,,
आज परीक्षा का वक़्त,,,
ख़ुद में खुदी को ढूंढ लेंगे ।

लगाएँ मास्क,
करें सैनिटाइज,,
धोएं हाथ,,,
सिर्फ़ यही है चॉयस ।

थोड़ी सतर्कता,
थोड़ी एहतियात,,
दूर से नमस्ते,,,
दूर से हो बात ।

मत लें इसे हल्का,
नहीं रहा हूँ डर,,
ये समय की मांग,,,
लें कमर को कस ।

ना करें घृणा,
बस रहें सचेत,,
करनी हो मदद,,,
तो ना कोई खेद ।

रक्खें होंसला,
ना हो घबराहट,,
ये ही सार,,,
ये शक्ति, ताक़त ।

मुझसे अकेले,
ना होगी रोकथाम,,
आप सब का साथ,,,
तभी ढलेगी शाम,,,,
तभी ढलेगी शाम ।

स्वरचित – अभिनव ✍

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

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