कविता

रवि के पास – शुभम शर्मा

रवि के पास… (रवि अर्थात सूर्य)

सर्द सासें ओला बनके हैं जहन में बह रहीं
मन की गर्मी बाजुओं में बौखलाहट कर रही
रुक चुकी बहती पवन अब तो बस हिमपात है
ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है…..

शांत मन है जोश उत्तम हृदय में आघात है
है मजे में सारी दुनिया दुनिया में संताप है
है गगन के पास का मंजर बहलाने को सही
रुक चुका है मेरा जीवन अब नहीं कुछ खास है
ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है…..

आयी आंधी उखड़े बूते जग चुकी हैवानियत
क्यों पड़े हैं ख्वाब रूठे क्यों मरी इंसानियत
हैं चमकते आसियाने जो नजर के पास हैं
हैं वो मंजर सारे झूठे जो अभी तक खास हैं
ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है…..

शांत मन से जो मिला है न मिला वो चीखकर
हिल चुके हैं सारे पुरचे पास खुद को देखकर
रुक चला है सारा प्रकरण हांथ में वो हांथ है
जिसने देखा है अभी तक न किसी का साथ है।
ले चलो मुझको वहां तुम जो रवि के पास है…..

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

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