कविताख़ास

पन्द्रह अगस्त‌ की उस गाथा को, हम यूं ही नहीं गाते हैं।।

बहुत कठिन था वो दौर,जिसको आज हम याद करते हैं ।
पन्द्रह अगस्त‌ की उस गाथा को,हम यूं ही नहीं गाते हैं।।

मंगले पांण्डे चढा फांसी पर,लक्ष्मी बाई के हम दिवाने है ।
पन्द्रह अगस्त‌ की उस गाथा को,हम यूं ही नहीं गाते हैं।।

भगतसिंह,राजगुरु,चन्द्रशेखर,जिनके गीत सब गाते हैं ।
पन्द्रह अगस्त‌ की उस गाथा को,हम यूं ही नहीं गाते हैं।।

तात्या टोपे आजादी का सपना, जनता को देते जाते हैं ।
पन्द्रह अगस्त‌ की उस गाथा को,हम यूं ही नहीं गाते हैं।।

राणाप्रताप मेवाड़ की आन,बान,शान के लिए मर जाते हैं ।
पन्द्रह अगस्त‌ की उस गाथा को,हम यूं ही नहीं गाते हैं।।

राजा,रंक,जन सभी तो आजा़दी की सुगंध मे मतवाले हैं ।
पन्द्रह अगस्त‌ की उस गाथा को,हम यूं ही नहीं गाते हैं।।

माता रोई ,पत्नी रोई ,रोई बहने ;उन देशप्रेमी वीरों की ।
आओ याद करें आज गाथा फिरसे,मातृभूमि के बेटों की ।।

बहुत कठिन था वो दौर,जिसको आज हम याद करते हैं ।
उन वीरों की याद में हम 15 अगस्त का पर्व मनाते हैं।।

बलिदान की उन गाथाओं को हम अपने हिय सजातें हैं ।
उन वीरों की याद में हम 15 अगस्त का पर्व मनाते हैं ।।

जय हिन्द ,जय भारत
अजय‌ महिया (हनुमानगढ़)

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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