कविता

मेरी ही ख़ातिर

मेरी ही ख़ातिर

सिर्फ़ मेरी ख़ातिर ,
ये सब हैं हाज़िर,
ये हिन्द के नायक,
कुछ करें ना ज़ाहिर । 4

बिन खुद की परवाह,
मेरी करें रक्षा,
दें सीख व शिक्षा,
ये रब का दर्जा । 8

कल ना थी कद्र,
अब होता फक्र,
गोल घूमा चक्र,
ये भले व भद्र । 12

ये जैसे योद्धा,
हम केवल श्रोता,
पकड़ें ये कमान,
ना कोई समझोता । 16

हो सब्ज़ी वाला,
या किराने वाला,
मेरा रखवाला,
ये जैसे शिवाला । 20

ये सफाई कर्मचारी,
मैं हूँ आभारी,
कूड़ा ये उठाते,
लें ज़िम्मेदारी । 24

ये पुलिस सिपाही,
जैसे बड़े भाई,
मेरे सलाहकार,
है भलाई चाही । 28

इनका भी घर,
पर छोड़ डगर,
करते ये सेवा,
ये हैं ईश्वर । 36

मेरे इनपर कर्ज़,
मैं निभाऊँ फर्ज़,
इंका सम्मान,
करूँ इनपर गर्व । 40

ये सच्चे सहायक,
हैं ये ही विनायक,
होनहार सपूत,
काबिल और लायक । 44

स्वरचित – अभिनव ✍🏻

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

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