अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 6
ख़ुद को खुदा, तुझको जुदा है माना मैंने,सच कहूँ - ख़ुद को बिल्कुल भी ना जाना मैंने !एक अरसे बाद आज मेरी आँख खुली,केवल ठुकराया बस, ना सीखा अपनाना मैंने । ✍🏻 अभिनव कुमार
मान ही गए हम तुम्हें जनाब,मंसूबों को अपने दिया!-->!-->!-->…
कन्यादान में दान के मायने
कन्यादान में दान के मायने
मूर्खता का शिक्षा के साथ कोई संबंध नहीं है। कोई बहुत शिक्षित होकर भी मूर्ख हो सकता है। स्वयं को प्रगतिशील और आधुनिक दिखाने की होड़ में भी कुछ लोग मूर्खताएँ करते हैं। एक IAS अधिकारी हैं, जिनकी मीडिया में बड़ी!-->!-->!-->…
अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 5
मुझे ज़िन्दगी तुझसे शिकायतें बहुत हैं,तुझे दी मैंने हरपल हिदायतें भी बहुत हैं,आज निकला जब मैं सड़क पर,तब जाना कि तेरी मुझ पर इनायतें बहुत हैं । अभिनव कुमार
तुमने बनानी चाही हमसे,हम बना ना पाए,,ग़ैरों की तो बात दूर,मेरे पास ना साए ।!-->!-->!-->…
लॉन्ग डिस्टेंस वाली सोहबत
लॉन्ग डिस्टेंस वाली सोहबत
आजकल एक अलग इश्क़ जी रही हूंलौंग डिस्टेंस में रहकर नजदिकियों वालीं कविताएं लिख रहीं हूं।अच्छा, ये भौगोलिक दूरियों वाली सोहबत क्लिशे सी लगे शायदपर क्या खाएं, कहां गए, किस से मिले..से आगे की बातें भी बुन रही!-->!-->!-->…
हमारी वो मासूम मां
हमारी वो मासूम मां,
जिनके पास ऐसी मासूम मां हैं जिनका ……
न कोई सोशल मीडिया पर अकाउंट हैं,
न फोटो ,
सेल्फी का कोई शौक है,
उन्हें ये भी नहीं पता की स्मार्टफोन का लॉक कैसे खुलता है,
जिनको ना अपनी जन्मतिथि का पता है,
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रोजगार की चाहत – कविता मनोज कुमार – हनुमानगढ़
रोजगार की चाहत
खाली कंधो पर थोड़ा सा भार चाहिए।बेरोजगार हूँ साहब रोजगार चाहिए।जेब में पैसे नहीं डिग्री लिए फिरता हूँ।दिनोंदिन अपनी नजरों में गिरता हूँ।कामयाबी के घर में खुलें किवाड़ चाहिए।बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।प्रतिभा की!-->!-->!-->…
मनोज कुमार – छद्म रचनाएँ
कभी साथ बैठो तो पता चले की क्या हालात है मेरेअब तुम दूर से पूछोगे तो सब बढ़िया हालात है मेरेमुझे घमंड था की चाहने वाले दुनिया में बहुत है मेरेजब बात का पता चला तो उतरगये नखरें तेवर सब मेरे।। मनोज कुमार, नोहर (हनुमानगढ़)
होठों पर!-->!-->!-->…
आसान है क्या …
आसान है क्या …
आसान है क्या ?सोचो तो सब कुछ !सोचो तो कुछ भी नहीं !
चिंतन पर,सबकुछ ही निर्भर,क्या सरल, क्या है विकट !
मन:स्थिति,लिखती है विधि,बनाए बिगाड़े हर घड़ी ।
श्वास लेना,आसान है क्या ?कोशिश कर, सब कुछ होगा ।
आत्मबोध -!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
अजय महिया छद्म रचनाएँ – 5
हर सुबह का धूआं कोहरा नहीं होता है ।हर रात का चन्द्रमा काला नही होता है ।।बीत जाते हैं ज़िन्दगी के हसीन पल भी ।हर दिन नए साल का सवेरा नहीं होता ।। अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
दिल की धड़कनें ,रातों की नींद,मेरा चैन ले गई ।इक खुबसूरत कली!-->!-->!-->…
मिलन को रास रचाता हों
नज़रों की सीमा से मीलों उपरकोई गीत मिलन के गाता हों।
जहां सूरज बातें करता होंबिखरी रोशनी समेटता हों।
धरती भी अलसाती होंबादल ओढ़ लजाती हों।
चांद बीच आ जाता होंजलन में मुंह बिचकाता हों।
शाम ढले सब प्रीत लिएमिलन को रास रचाता हों।।!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
शुभम शर्मा ‘शंख्यधार’ – छद्म रचनाएँ
मैं आसमां और तू जमीं (शायरी)बड़ी लंबी नहीं है डोर जो है तेरी मेरीमैं आसमां तेरा तू है जमीं मेरीजब जब महसूस करता हूं करीब से खुद कोतेरी खुशबू से महकती है हर सांस ये मेरी।शुभम शर्मा 'शंख्यधार'
तुम मेरा आईनाहर धड़कन धड़कती है तुमसे,हम जान!-->!-->!-->…
हम – कविता
हम
चाय के शौकीन हमधुन में अपनी लीन हमजब लगेगी अपनी किस्मतहोंगे तब रंगीन हम
छा रहा है बादलों काहल्का सा पहरा यहांहो चला सबकुछ धुआं साअब है आती नींद कम।
सीता माता को ना छूना रावण की “महानता” नहीं मज़बूरी थी |
सीता माता को ना छूना रावण की "महानता" नहीं मज़बूरी थी |
हर साल हम दशहरा पर रावण के "महान" होने की गाथा सुनते है | और सोशल मीडिया पर तो रावण के "संस्कारो" की तारीफ करते लोग नहीं थकते |
इसमें सबसे बड़ी बात बोली जाती है की रावण ने सीता!-->!-->!-->!-->!-->…
दहलीज़ – कविता – शिल्पी प्रसाद
कुछ किताबें उन मांओं पर लिखी जानी चाहिए,जिनके दिन चुल्हें के धुएं की धुंध बनकर रह गए।एक पन्ना भी मन का न नसीब आया जिनके।।
एक-आधा गीत उनके द्वंद्व की भी गढ़ी जानी चाहिए,महिमा मय नहीं, खांस-खांस खाट पर निढाल हुई जो पट गई।दम निकलते वक्त!-->!-->!-->…
अभिनव कुमार छद्म रचनाएँ – पर्यावरण
जीव जन्तु,जैसे शिव शंभू,बचाते पर्यावरण,ना किन्तु परन्तु ।अभिनव कुमार
दो हाथ जब मिल जाएं,पशु, पेड़ फ़िर खिलखिलाएं,वातावरण जीवित हो जाए,आओ धरा बचाएं । अभिनव कुमार
गागर में साग़र,सबकुछ ही उजागर,इन्सां, पेड़-पौधे, जानवर,मिलकर बनाएं जीवंत!-->!-->!-->!-->!-->…
और जब मोहब्बत का रुख़ बदलेगा..
और जब मोहब्बत कारुख़ बदलेगाअपनी दिखावट सेअपने होने भर केअहसास मेंतब,अपनी कहानी केसबसे प्रभावशाली औरमुख्य किरदार आपस्वयं होंगे।
©शिल्पी
बस अभी अभी तो
बस अभी अभी तो….
अभी सूरज ढलाअभी चांद आ गयारात आंखों में थीमैं बोतल में आ गया
अभी थे तारे खिलेअभी प्रभात आ गयाअभी बस आंख खुली किजुवां पे उसका नाम आ गया
शुभम शर्मा 'शंख्यधार'
विरह – कविता -शिल्पी प्रसाद
तुम जान लो,मैं जानती हूंये बातों की लड़ीजो स्वाभाविक आजमेरी जीवन कीशैली हो गई है,यह आदत एक रोज़हवा में घुलपिघल जाएगीऔर, पीछे रह जाएगीमेरी पीड़ा,तुम बिन मिलेविरह मिल जाएगा मुझे।
~शिल्पी
दादी कहानी सुनाओ ना !!
दादी कहानी सुनाओ ना !!
दादी मां दादी मां कहानी एक सुनाओराजा रानी घोड़ा गाड़ी की बातें बतलाओआवाज तुम्हारी है मीठी मन को मेरे भाती हैहर बार नई कहानी दादी आप कहां से लाती हैं?
हल्के से मुस्काके बोलीं दादी प्यार जाता के बोलींचिल्लम!-->!-->!-->!-->!-->…
कलम – (कविता) अभिनव कुमार
कलम ✍🏻
छोटी बहुत ये दिखती है, प्रबल मग़र ये लिखती है,बड़ों बड़ों को पार लगादे, इससे उनकी खिजती है ।
ये हालात लिखती है, शीशे जैसी दिखती है,जैसी बाहर वैसी अंदर, सच से इसकी निभती है ।
उसूलों पर ही चलती है, बिल्कुल भी ना!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…