कविता

किस्से

किस्से,
कुछ किताबी
कुछ खयाली,
पन्नों के बीच
ठूंठ पत्तियों की तरह,
बेजान और अंजान,
चेतना के
निचले सतह से
तैरकर
मन की शिथिल
सतह को
उद्विग्न करते
चले जाते है।

किस्से,
कुछ किताबी
कुछ खयाली।

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